बृजनाथ जी क्या आप अपने अलावा सब को मूर्ख समझते हो?रमधनिया की जोरू धनिया क्या ठाकुर है ब्राह्मण है श्रीवास्तव है ?आप लोग सदा ही औरों को मूर्ख बनाते आये हो और यही अब भी कर रहे हो।उपदेश देने में बड़ी बड़ी बातें करने में आप सब बहुत निपुण हो।मैं देख रहा हूं कि एक भी व्यक्ति ने मैने जो सवाल उठाये हैं उन पर विचार नहीं किया।तो यह किस तरह की मानसिकता है?कोई अन्य विधा होती तो ऐसी प्रस्तुति को शायद बहुमत न मिलता।पर गीत नवगीत अभी भीपिछली शताब्दियों में जी रहा है।शोषितों को अभी मुश्किल से मौका मिलना शुरू हुआ है कि हम उन्हें गरियाने लग गये।हम यह नही देखते कि व्यवस्था अभी भी हमारी बनायी हुई चल रही हैऔर हर अव्यवस्था में हमारा भी कहीं न कहीं हाथ है।हम यह नहीं कहते कि कोई दलित बुरा नहीं हो सकता पर उसका चित्रण करते हुए हमें सावधानी बरतने की आवश्यकता है।हमें समय और समाज को समग्रता से देखना परखना होगा।वंचितों को एकदम से दोष देना ठीक नहीं।हम उनको गरियाने का भी तरीका सीखें।पहले स्वयं पूर्वाग्रह से मुक्त हों तब दूसरों को कहें।जब गीतकार अपनी प्रस्तुति में पूर्वाग्रह से युक्त दिखता है तो वह अपनी प्रस्तुति और दूसरों के साथ कैसे न्याय कर पायेगा।
-रमाकान्त यादव
July 20 at 9:16am
 
 
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