मेरे विचार से इस गीत को नवगीत नहीं कहा जाना चाहिए। इसमें न तो कथ्य की नवता है न ही शिल्प की और न ही युगबोध का कोई संकेत। यह एक काल्पनिक और वायवीय चाहत का प्रकटीकरण है जिसका मानवीय संवेदनात्मक बिन्दुओं से कोई सम्बन्ध नहीं है। फिर भी अपने शैल्पिक कसाव और भाषा के स्तर पर एक उत्तम गीत है जिसके लिए मनोज जैन 'मधुर' सराहना और बधाई के पात्र हैं । 
-जगदीश पंकज
July 9 at 3:13pm
 
 
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