मित्रो, मनोज जैन मधुर जी का गीत आज अचानक पढ़ा ,सभी विद्वानों के विमर्श को भी।मेरे विचार से इसमें नवगीत के समस्त लछण है।और अब समय आ गया है कि गीत नवगीत के पचडे में न पड़ कर श्रेष्ठ सृजन की ओर ध्यान दिया जाय। ज्यादानवता के चक्कर मे कहीं गीत की बधिया न बैठ जाय।गीत के साथ कोई भी विशेषण जोड़ ले पृथक पहचान के लिए किन्तु उसमें गीत के सभी तत्व हैं कि नहीं इसे पहले जाँचना परखना होगा।नदी सतत प्रवहमान संस्कृति की प्रतीक है तट पर खड़ा वट संस्कृति का रछक और पोषक है ,वट होने का परोपकारी भाव जिसमें आ जाय वह विराट व्यक्तित्व का धनी स्वयं मेव हो जायेगा।भाई मनोज जी श्रेष्ठ रचना केलिए बधाई।
-डा० विनय भदौरिया
July 10 at 7:18am 
 
 
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