जो लोग हिन्दी के लिए अपने स्तर पर कार्य करते रहे हैं वे आगे भी करते रहेंगे... उन पर इन सम्मेलनों का प्रभाव नहीं पड़ता है...... हाँ उनके किये गये कार्यों को चालाक लोग अपना कार्य बताकर..... लाभ उठाते रहे हैं और आगे भी उठाते रहेंगे...... हिन्दी फूलेगी भी और फलेगी भी .......
बड़ी आवश्यकता आज इस बात की है कि हमारा लोक लगातार छीज रहा है, तमाम लोक शब्द, लोक मुहावरे, लोकोक्तियाँ, लोक गीत, लोक गाथाएँ...... आदि आदि लोक जीवन से विलुप्त होते जा रहे हैं.... इन्हें न कोई संस्थान सहेजने का प्रयास कर रहा है और न अकादमियाँ.... जब कि सबको पता है कि भाषा की असली शक्ति लोक से ही आती है..... लोक मानव ही भाषा का निर्माता है..... लोक जीवन में अभी भी बहुत कुछ बचा हुआ है.......
क्या कुछ लाख रुपए खर्च करके यह सब संकलित नहीं कराया जा सकता है ? और अनेक हिन्दी प्रेमियों ने, साहित्यकारों ने ऐसी सामग्री अपने स्तर पर संकलित कर रखी है क्या उसे प्रकाशित नहीं कराया जा सकता है ....... ?
-डा० जगदीश व्योम
बड़ी आवश्यकता आज इस बात की है कि हमारा लोक लगातार छीज रहा है, तमाम लोक शब्द, लोक मुहावरे, लोकोक्तियाँ, लोक गीत, लोक गाथाएँ...... आदि आदि लोक जीवन से विलुप्त होते जा रहे हैं.... इन्हें न कोई संस्थान सहेजने का प्रयास कर रहा है और न अकादमियाँ.... जब कि सबको पता है कि भाषा की असली शक्ति लोक से ही आती है..... लोक मानव ही भाषा का निर्माता है..... लोक जीवन में अभी भी बहुत कुछ बचा हुआ है.......
क्या कुछ लाख रुपए खर्च करके यह सब संकलित नहीं कराया जा सकता है ? और अनेक हिन्दी प्रेमियों ने, साहित्यकारों ने ऐसी सामग्री अपने स्तर पर संकलित कर रखी है क्या उसे प्रकाशित नहीं कराया जा सकता है ....... ?
-डा० जगदीश व्योम