जगदीश व्योम जी ! माहेश्वरी तिवारी जी का साक्षात्कारः पढ़ा ! माहेशवर जी वे नहीं बात कहीं है जो मैंने अपनी पोस्ट में कही थी जिसकी। वजह से मुझे 'ये कौन न्यायाधीश हैं' जैसी उपाधि से विभूषित होना पड़ा ! ख़ैर , माहेशवर जी वे सही कहा है कि मंच गीत/कविता का सशक्ति माध्यम है ! उन्होंने बहुत सटीक बात कही कि चुटकुलेबाज और नौटंकीबाज़ अपना काम करते हैं आप अपना ! आप उन्हें रोक नहीं सकते ! आदरणीय , यदि उन माध्यमों से नवगीत अपने को दूर रखेगा जो श्रोताओं तक पहुँचे का सीधा रास्ता है तो हम अच्छे साहित्य के लिये दूसरों से डर कर नयी राह क्यों तलाशे बल्कि इस कोशिश में लगे कि हल्की बात कहने वाले हमारी राह से घबरा कर पलायन करें 'मेरे रस्ते तो जंगल से ही गुज़रते है , तुझे तकलीफ़ है तो राह बदल सकता है ! ' गीत/कविता की राह इतनी आसान भी नहीं कि जब चाहा क़लम उठायी और लिख मारा !
-के के भसीन
August 24 at 2:19pm
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