सत्य कहा आपने. मैं तो हैरान हूँ कि यशजी के प्रश्नों पर जिस तरह से आ. माहेश्वरजी ने विन्दुवत बातें की हैं इस तरह से आजकी तारीख में बोलने वाले कम रह गये हैं. जो हैं, उन्हें प्रकारान्तर से न सुनने का हठ पाल लिया गया है.
आपने जिस तरह से उक्त विमर्श को इस समूह में इनिशियेट किया. ’जागरण’ में छपा यह साक्षात्कार उसी का विस्तार सदृश है।
-सौरभ पाण्डेय
August 24 at 11:20am
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