Sunday, September 27, 2015

माहेश्वर तिवारी का साक्षात्कार

भाई रमाकांत जी ने तिवारी जी के इंटरव्यू के निहितार्थ को बखूबी रेखांकित किया है, वहीं "मंचीय कवियो के सरोकार गंगा गये गंगादास जमुना गये जमुना दास हो जाते है।लोगो की नजर मे सब रहता है ..माया और राम दोनो को साधने की कोशिश असंभव है। जिनकी श्र्द्धा मंचीय प्रपंचो से जुडी है वे सच्चे अर्थो मे नवगीत के मित्र नही हो सकते।शंभुनाथ जी के शब्दो मे वे नवगीत के शत्रु हैं।"- कहकर आ. भारतेंदु जी ने माहेश्वर जी जैसे उन तमाम लोगो के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि ऐसे लोग नवगीत के 'मित्र' नहीं हो सकते। यानि कि ऐसे लोग सच्चे नवगीतकार नहीं। मुझे लगता है कि आ. राधेश्याम जी ("कुछ अच्छे कवि भी मंच पर पहुचकर मंचीय़ हो गये । कवि सम्मेलनी व्यवसाय का हिस्सा बनने से उनका स्तर गिरा है) ने भी तिवारी जी जैसे मंच से जुड़े रचनाकारों की ओर संकेत किया है। भसीन जी कहते हैं - "असल में माहेशवर जी के अन्दर एक सहज गीतकार भी है". यहाँ भी शब्द विचलन की ओर संकेत करता है। एक बार माहेश्वर जी ने दैनिक जागरण में 'सहज गीत' की वकालत की थी। यह वकालत भसीन जी की मीमांसा से मेल खाती है। तो क्या तिवारी जी को सहज गीतकार माना जाना चाहिए (मंच से उनके जुड़ाव और मंच की डिमांड को ध्यान में रखते हुए)?

-अवनीश सिंह चौहान
August 25 at 11:08am 

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