हिन्दी संस्थान या अन्य साहित्यिक अकादमियों में जिस तरह की साहित्यिक माफियागीरी और राजनीति व्याप्त है, उनसे नवगीत के लिए कोई उम्मीद करना समय खराब करना ही है.... हमें ही नवगीत और हिन्दी साहित्य के लिए अपने स्तर से ही जो कर सकते हैं वह करना है, नवगीत विमर्श इसी पहल का एक सोपान है....... मेरा निवेदन तो सिर्फ यही है कि ---- " बहते जल के साथ न बह / कोशिश कर के मन की कह " .....
-डा० जगदीश व्योम
August 25 at 9:36am
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