पूर्वाग्रह रहित होकर ही किसी रचना पर सार्थक टिप्पणी की जा सकती है। नवगीतकार ने नवगीत के मुखड़े में ही "आया ट्विस्ट कहानी में"' कहकर तथाकथित सामाजिक परिवर्तन की ओर संकेत किया है। राजनीति और समाजसेवा अब सिर्फ जेब भरने और ऐय्यासी के लिए है। यह सर्वविदित है। बड़ी कुर्सियों से होते हुए सत्ता का नशा अब गाँव पंचायत की चौपाल तक चढ़ गया है। कुर्सी और नशा दोनों जातिनिरपेक्ष हैं। रमधनिया तो एक प्रतीक मात्र है उस परिवर्तन का, जिसमें वही लिप्साएँ और भोकाल की प्रव्रत्ति घर कर गयी है, जिसके लिए पूर्ववर्ती को पानी पी कर कोसा था। निचले तबके का जनप्रतिनिधि अगर अपने पद का दुरुपयोग कर सरकारी धन की बंदरबांट करता है, तो उसका यह कहकर बचाव नहीं किया जा सकता कि पीढ़ियों से अन्य लोग भी यही कर रहे थे और यह उसका नैसर्गिक और मौलिक अधिकार है। रबड़ी देवी को राबड़ी देवी कह देने से मात्र से किसी की प्रतिष्ठा में चार चाँद नहीं लगते। अगर उसमें नैतिक गुण हैं तो वह रबड़ी देवी होकर भी प्रतिष्ठित है। नवगीत में कटु यथार्थ है, और यह समय को व्यक्त करने में सक्षम है।
-रामशंकर वर्मा
July 13 at 1:55pm
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