रमाकांत जी जरा किसी दलित बहुल गांव मे /आदर्श गांव मे जाकर देखें/जहां के प्रधान दलित हैं या उनकी पत्नियां प्रधान हैं।वे सब मनुवादी /सामंतवादी आचरण वाले हो गए हैं कि नही..यह भी देखने की बात है।तमाम ब्रहमण नेताओ को बहन जी के पांव छूते आपने न देखा हो मैने देखा है।..तो मेरा पैतृक गांव दलित बहुल है।मैने सीतापुर,ललितपुर,उन्नाव,हरदोई,लखनऊ आदि के गांव देखे हैं वहां रहा हूं नौकरी की मजबूरी से।अब सब जगह बदलाव आ चुका है कहीं कम कहीं ज्यादा।मेरा अवधी उपन्यास भी इसी तरह के चरित्रो प आया है -नईरोसनी-..खैर हर रचनाकार का अपना अनुभव क्षेत्र होता है ।केवल रायबरेली या एक जगह रहकर जाति समस्या पर या उसके आकलन पर टिप्पणी करना उचित नही है।सत्ता मिलते ही मनुष्य सामंतवादी/मनुवादी आदि हो ही जाता है।
-भारतेन्दु मिश्र
July 12 at 8:22pm
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