नवगीत में जातिबोध और अंधभक्ति की भी बड़ी भूमिका रही है - उठाने-गिराने से लेकर जय-जयकार करने तक। लेकिन कुछ विद्वान ऐसे भी हैं जो जातिवादी मानसिकता और भक्ति-भावना से ऊपर उठकर सच कहने का साहस रखते हैं। ऐसे सत्यनिष्ठ गुणीजनों को मैं हृदय से नमन करता हूँ। आ. भारतेंदु जी ने एक गंभीर बात कही है कि 'प्रश्नावली जैसी बनाई हो वैसे ही उत्तर मिलने स्वाभाविक हैं।" यानि कि - प्रश्नावली कैसी है और क्यों है, विचारणीय है? और प्रश्नोत्तर देने वाले ने ऐसे प्रश्नों पर अपना मत कैसे और क्यों रखा, जबकि वह वरिष्ठतम नवगीतकारों में से एक हैं?
-अवनीश सिंह चौहान
August 24 at 6:39pm
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