वाह क्या निष्कर्ष निकला पूरे विमर्श का। चूँ-चूँ का मुरब्बा। जब केवल इस नवगीत के कथ्य पर विमर्श हुआ तो वही बात आदरणीय भारतेन्दु मिश्र, आचार्य संजीव सलिल, व्योम जी, बृजनाथ जी, जगदीश पंकज जी, सौरभ जी, वेद शर्मा जी सहित सभी मर्मज्ञों ने कही। क्या निकला, यही कि सत्ता पाते ही उस वर्ग में भी वही नैतिक पतन के कीटाणु प्रवेश कर गए, जो सत्ताच्युत वर्ग में थे। यही कि नवगीत में यथार्थ की सांचबयानी है। शेष तो अपनी-अपनी विचारधारा को नवगीत पर आरोपित कर दिया गया।
-रामशंकर वर्मा
July 21 at 2:20pm
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