तिवारी जी के अपने रचनाधर्म को लेकर अच्छी चर्चा हुई है। नवगीत को लेकर उसके दोहरे संघर्ष को लेकर जिसके वो साक्षी रहे हैं उस पर और बात होती तो अच्छा लगता.उनके समकालीनो को लेकर भी चर्चा होनी चाहिए....इसी प्रकार नवगीत के इतिहास पर कुछ और सवाल हो सकते थे आदरणीय से..अब भाई यश मालवीय ने प्रश्नावली जैसी बनाई हो वैसे ही उत्तर मिलने स्वाभाविक हैं।
-भारतेन्दु मिश्र
August 24 at 6:19pm
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