इस आलेख का पहला अंक हमने पढ़ा है. इसके बाद वाला अंक जिसकी चर्चा हुई है, अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। नचिकेताजी के आलेख से जो आपने उद्धरण दिया है वह अत्यंत सटीक और सार्थक है. इन तथ्यों का प्रचार आवश्यक है और समय की मांग भी. यह अवश्य है, कि पाठक के स्तर को सकारात्म्क आयाम मिले, इसके लिए भी रचनाकार को प्रयास करना है. अर्थात रचनाकार से मात्र भावमय पंक्तियों की सपाट अपेक्षा कभी नहीं होगी. तो दूसरी ओर, पाठक की अध्ययनप्रियता और सकारात्मक वैचारिकता रचना और रचनाकार दोनों के प्रति रचनात्मक सहयोग होंगी।
-सौरभ पाण्डेय
June 8 at 11:35am
No comments:
Post a Comment