बिलकुल सच कहा !जिस तरह आधुनिक पेन्टिंग को समझने के लिए एक जटिल व कृत्रिम बौद्धिकता और वाहियात समझ की जरूरत है, उसी भांति आज की बड़ी बड़ी साहित्यिक हिन्दी पत्रिकायें दुरूह और पहेली संरचना की कविताएँ छाप क्र जनता के सरोकारों से पूरी तरह विमुख है ! उन्होंने तो नारी और काम पर कामशास्त्र को भी पानी पिला रखा है,और आलोचक पूरी तरह जुगाड़ू ,पक्षपाती , स्वजन हितैषी ,पेड न्यूज चैनल बन गए है!
-रंजना गुप्ता
June 8 at 1:02pm
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