अवनीश सिंह चौहान आदरणीय भाईसाहब बृजनाथ श्रीवास्तव जी, मुझे यह कहते हुए बहुत कष्ट हो रहा है कि आप आदरणीय रमाकांत जी द्वारा की गयी सार्थक आलोचना को ही स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। उनके द्वारा उठाये गए प्रश्नों का उत्तर भी आपके पास नहीं है। दुखद यह भी कि आपके गुट के तमाम लोग आँखों पर पट्टी बांधकर यहाँ टिप्पणी कर रहे हैं। मुझे तो लगता है कि इस गीत को लेकर आपकी दृष्टि ठीक नहीं है, या आप अपनी दृष्टि को 'सार्वभौमिक सत्य' मानकर चल रहे हैं। ऐसे में यदि मैंने कुछ लिख दिया तो आप कैसे मेरी बात समझ पाएंगे।
-अवनीश सिंह चौहान
July 20 at 10:05am
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