भाई सलिल जी सत्य वचन ।माना भारत का अतीत सामाजिक संगठन की दृष्टि से स्वस्थ नहीं कहा जा सकता किन्तु उन्हीं अपमूल्यों की पुनरावृत्ति को भी उचित नहीं कहा जा सकता ।अतीत में "अ"ने "ब"का शोषण किया । समय बदला अब "ब" के द्वारा "अ"का शोषण किया जाने लगा। उचित तो तब होता जब "ब"इतना दबाव बनाता कि "अ"शोषण से बाज आता और "ब"स्वयं शोषण न करता ।किन्तु न पहले और न आज ही समाज और समसयाओं से किसी को लेना देना है ।सभी क्षेत्रों में अवमूल्यन का एकमात्र कारण येनकेन प्रकारेण सत्ता छीनना भोगना और निपोटिज्म के एजेंडे पर काम करना भाड़ में जाय देश जनकल्याण और मानवता ।सब खेल जर जोरू जमीन की लूट का है ।अपराध जितने अधिक होगें जनता को प्राणरक्षा की उतनी ही समस्या होगी और जितनी अधिक समस्या होगी अपनी समसयाओं में उलझी रहेगी तथा दबाव में रहेगी और सत्ता भोग निष्कंटक चलता रहेगा।भाई अधिकार सुख बड़ा ही मादक होता है। सत्ता सुख चाहने वालों का एक उद्देश्य और एक ढंग होता है ।जाति धर्म के भेद के बिना।
-ब्रजनाथ श्रीवास्तव
July 14 at 5:46pm
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