व्योम जी, आपका प्रश्न स्वाभाविक है किंतु गीत और नवगीत के पक्ष और विपक्ष मे तर्क करने के लिए यह मंच बहुत उपयुक्त नही जान पडता क्योकि यहां हर गीतकार अपना प्रवाचक भी है तर्क पूर्ण है या नही इस का विवेक किए बिना ही।इसके मै पहले भी मनोज जैन की पुस्तक पढ चुका हूं और टिप्पणी भी कर चुका हूं।रही बात इस गीत के नवगीत होने या न होने की तो ये फेसबुक की एक टिप्पणी मे समझाना सहज नही होगा।कभी अवसर मिले तो इसी विषय पर विस्तार से मित्रो से चर्चा की जा सकती है। यहां गंभीर विवेचन कर पाना संभव नही है।किसी एक लक्षण से कोई गीत नवगीत नही हो जाता।नवगीत का रचनाविधान है जिस पर विस्तार से बात की जा सकती है।अधिकृत विद्वानो से बहस /परिचर्चा की जानी चाहिए।उपयुक विद्वानो के साक्षात्कार आदि भी होने चाहिए।बात एक मनोज जैन के नवगीत /गीत की नही है।आपने देखा कि मनोज जैन स्वय्ं ही दुविधा मे हैं..ये दुविधा अनेक गीतकारो/नवगीतकारो मे होती है।
-भारतेन्दु मिश्र
July 9 at 7:52pm
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