सबसे पहले तो आभार आप जैसे महापुरुषों का जिन्होंने मुझ जैसे तुकबंदिये की रचना को आदरणीय मंच पर चर्चा के लिए अनुमोदित कर दिया। उनका भी आभार जिन्हें यह तुकबंदी पसंद आई उनका तो विशेष आभार जिन्होंने रचना को गीत नही माना उनका कोटि कोटि आभार जो इसे नवगीत नहीं मान रहे है।मैंने प्रारम्भ में ही निवेदन कर दिया था यह रचना है ,न यह गीत है ,न नवगीत। अब जहां आप जैसे विज्ञजन हो भला वहां मेरी सहमति असहमति के क्या मायने ? फिर भी सम्मानीय मंच के समक्ष अर्जी तो लगा ही सकता हूँ ,अगर मंचस्थ लोगों का हुकुम हो तो ?
हुज़ूर मेरा प्रश्न है इस रचना में मानवीय संवेदनात्मक बिंदुओं से कोई सम्बन्ध कैसे नहीं है ? यह बात मेरी समझ से परे है ?
युगबोध कैसा होता है ?
गीत है या नवगीत इस
पर अंतिम मोहर
कौन लगता है ?
बिंदु बार उत्तर मिले तो गंगा नहा लूँ।
July 9 at 6:23pm
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