"सच तो यह है कि जनता कविता के निकट आना चाहती है, उसे अपनाना चाहती है, उसे अपने अंतरंग में बसाना भी चाहती है, बशर्ते कि कविता जनता की भाषा में हो, उसके लिए बोधगम्य हो, उसमें उसके जीवन की सच्चाइयों और अनुभूतियों की सच्ची अभिव्यक्ति हो और उसकी परम्परा से हासिल संस्कार, रुचि एवं स्वभाव से रचे बसे लय-छन्दों के सहारे लिखी गयी हो। "
-नचिकेता
"समकालीन छान्दस कविता की उपेक्षा क्यों", गीत गागर, अक्टूबर-दिसम्बर २०१३, पृ० ३६
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